सुप्रीम कोर्ट पहचा हिजाब मामला तो सुप्रीम कोर्ट भी बॅटा हिजाब के हिसाब के लिए इंतज़ार ही विकल्प है

क्या हिजाब पहनने से किसी की धार्मिक भावना आहत हो सकती है? नहीं। क्या कालेज आने जाने वाले छात्र-छात्रा अपने हिजाब से अपने कपड़े तय कर सकते है? यकीनन पहली शर्त शिक्षा ही होती है। तो फिर हिजाब जरुरी क्यों है।

हिजाब मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट भी बंट गया। दो जजों की पीठ ने अलग - अलग निर्णय सुनाया। एक जज का कहना है कि हिजाब पर प्रतिबंध का इसलिए कोई मतलब नहीं है क्योंकि बच्चों या बच्चियों के लिए सबसे पहली और ज़रूरी शर्त शिक्षा है। क्या कपड़ों की वजह से किसी को शिक्षा से वंचित किया जा सकती है

दूसरे जज ने कहा कि क्या हिजाब न पहनने से किसी की धार्मिक भावना आहत हो सकती है? नहीं। क्या कॉलेज आने वाले छात्र-छात्रा अपने हिसाब से अपने कपड़े तय कर सकते हैं? यक़ीनन पहली शर्त शिक्षा ही होती है। तो फिर हिजाब ज़रूरी क्यों है? दोनों जजों के तर्क अपनी जगह सही हैं। अब सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा? अब यह मामला प्रधान न्यायाधीश के पास जाएगा। वे तय करेंगे कि आगे की सुनवाई के लिए इसे संविधान पीठ को सौंपा जाए या किसी अन्य पीठ को सोपा जाए।

संस्थानों में हिजाब पहनकर आने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस आदेश के खिलाफ और पक्ष में वहां कई दिनों तक छात्र - छात्राओं ने जंगी प्रदर्शन भी किए। मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुँचा । हाईकोर्ट ने पिछले दिनों सरकार द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध को हटाने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट के इसी आदेश को कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिस पर गुरुवार को दो जजों ने अपनी अलग - अलग राय दी है।

होना क्या चाहिए यह तो सुप्रीम कोर्ट   ही   तय। करने वाला है, लेकिन हैरत की बात  सिर्फ़  यह है  कि   एक तरफ़ ईरान जैसे देश में  महिलाएं  बच्चियां  हिजाब की अनिवार्यता से घबरा गई हैं और वे कह रही हैं  कि  हम क्या  यह  हमारी  मर्ज़ी  होनी   चाहिए।   धार्मिक   या राजनीतिक लोग हमारी ड्रेस तय करने वाले होते  कौन हैं?

यह भी कि हमने कौन सा जुर्म किया है जो  अपना  मुँह छिपा कर रहें? हमें हिजाब को उतार फेंकने  से   अपने भीतर की आज़ादी का एहसास होता है।  और यक़ीनन हम आज़ाद होना चाहती हैं, उन   हर  प्रतिबंधों  से  जो लड़की या महिला होने के कारण  हम  पर  लादे गए हैं। वजह चाहे सामाजिक रही हो या धार्मिक।  इधर  भारत में हिजाब पहनने को लेकर   संघर्ष।  हो  रहा   है। दोनों मामले एक - दूसरे के उलट हैं।

दरअसल धार्मिक मामलों में जब- जब राजनीतिक हस्तक्षेप होता है, चीजें गड़बड़ा जाती हैं। मूल भावनाएं कहीं राजनीतिक हल्ले में दब- सी जाती हैं। होना यह चाहिए कि ऐसे मामलों में तमाम धार्मिक और राजनीतिक दबाव को दरकिनार कर देना चाहिए। सच को उसके असली रूप में सामने आने की जगह हर हाल में देनी ही चाहिए। ख़ैर, हिजाब मामले में अंतिम फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है। वही सर्वोपरि होगा। वही सर्वमान्य भी है


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